बुधवार, 16 जनवरी 2019

मेरी प्यारी मां


बचपन में माँ कहती थी
बिल्ली रास्ता काटे,
तो बुरा होता है रुक जाना चाहिए…
बचपन में माँ कहती थी
बिल्ली रास्ता काटे,तो बुरा होता है
रुक जाना चाहिए…
मैं आज भी रुक जाता हूँ
कोई बात है जो डरादेती है
मुझे..यकीन मानो,
मैं पुराने ख्याल वाला नहीं हूँ…
मैं शगुन-अपशगुन को भी नहीं मानता…
मैं माँ को मानता हूँ|
मैं माँ को मानता हूँ|

दही खाने की आदत मेरी गयी नहीं आज तक..
दही खाने की आदत मेरी गयी नहीं आज तक..
माँ कहती थी घर से दही खाकर निकलो तो शुभ होता है..
मैं आज भी हर सुबह दही खाकर निकलता हूँ…
मैं शगुन-अपशगुन को भी नही मानता….
मैं माँ को मानता हूँ|
मैं माँ को मानता हूँ|
आज भी मैं अँधेरा देखकर डर जाता हूँ,
भूत-प्रेत के किस्से खोफा पैदा करते हैं मुझमें,जादू, टोने, टोटके पर
मैं यकीन कर लेता हूँ|
बचपन में माँ कहती थी कुछ होते हैं बुरी नज़र लगाने वाले,
कुछ होते हैं खुशियों में सताने वाले…
यकीन मानों, मैं पुराने ख्याल वाला नहीं हूँ…
मैं शगुन-अपशगुन को भी नहीं मानता….
मैं माँ को मानता हूँ|
मैं माँ को मानता हूँ|
मैंने भगवान को भी नहीं देखा जमीं पर
मैंने अल्लाह को भी नहीं देखा लोग कहते है,
नास्तिक हूँ मैं मैं किसी भगवान को नहीं मानता
लेकिन माँ को मानता हूँ में माँ को मानता हूँ||
लेखक-नागेन्द्र पाल सेनी

सोमवार, 7 जनवरी 2019

मोम का शेर

मोम का शेर


सर्दियों के दिन थे, अकबर का दरबार लगा हुआ था। तभी फारस के राजा का भेजा एक दूत दरबार में उपस्थित हुआ।

राजा को नीचा दिखाने के लिए फारस के राजा ने मोम से बना शेर का एक पुतला बनवाया था और उसे पिंजरे में बंद कर के दूत के हाथों अकबर को भिजवाया, और उन्हे चुनौती दी की इस शेर को पिंजरा खोले बिना बाहर निकाल कर दिखाएं।

बीरबल की अनुपस्थिति के कारण अकबर सोच पड़ गए की अब इस समस्या को कैसे सुलझाया जाए। अकबर ने सोचा कि अगर दी हुई चुनौती पार नहीं की गयी तो जग हसायी होगी। इतने में ही परम चतुर, ज्ञान गुणवान बीरबल आ गए। और उन्होने मामला हाथ में ले लिया।



बीरबल ने एक गरम सरिया मंगवाया और पिंजरे में कैद मोम के शेर को पिंजरे में ही पिघला डाला। देखते-देखते मोम पिघल कर बाहर निकल गया ।

अकबर अपने सलाहकार बीरबल की इस चतुराई से काफी प्रसन्न हुए और फारस के राजा ने फिर कभी अकबर को चुनौती नहीं दी।

शुक्रवार, 4 जनवरी 2019

बैल और भैंसे की दोस्ती

बैल और भैंसे की दोस्ती


एक गांव में एक किसान रहता था उसके पास एक बैल और एक भैंसा था
वह किसान सुबह उठकर के बैल और भैंसे को गांव के एक जंगल में चराने को छोड़ देता था
और खुद वह घर आ जाता था
दिन भर बैल और भैंसा जंगल में खूब घास चरते
और जब उन्हें प्यास लगती तो वह पास के तालाब में पानी पीते
दोनों में इतनी गहरी दोस्ती थी
अगर एक क्षण के लिए एक दूसरे को ना देखें तो बेचैन हो जाते थे 
उनकी दोस्ती को देख कर के तो जैसे इंसान भी कुछ नहीं था 
क्योंकि उनकी दोस्ती तो बिना किसी स्वार्थ की थी
जो  निस्वार्थ थी
एक रोज की बात है किसान बैल और भैंसे को हमेशा की तरह जंगल में घास चरने को छोड़ देता है 
और खुद घर आ जाता है
तभी पहाड़ों मे सीढ़ीनुमा खेत होते हैं
तो भैंसा ऊपर वाले खेत में घास चर रहा था और बैल 🐂 नीचे वाले खेत में घास चर रहा था
अचानक से कहीं से दो भूखे बाग आ गए
क्योंकि भैंसा बड़ा था और ताकतवर भी इसलिए दोनों बाघों ने भैंसे को छोड़कर बैल पर हमला बोल दिया
क्योंकि भैंसा ऊपर वाले खेत में था
और वहां से नीचे कूद भी नहीं सकता था 
भैंसा ऊपर से रास्ता ढूंढ रहा था  कि कैसे अपने दोस्त को दो बाघों से बचाया जाए
नीचे आने का रास्ता तो जैसे बहुत ही पतला था
भैंसे को कुुु भी समझ मे नहीं आ रहा था
जब भैंसे ने देखा
कि कैसे वो उसके दोस्त को मार रहे हैं
तो उसे कुछ नहीं सूझा और वह ऊपर वाले खेत से सीधा बाघ के ऊपर कूद गया
जिसने कि उसके दोस्त की गर्दन पकड़ रखी थी
बाघ के ऊपर कूदने से बाघ के आंत निकल गए
दूसरा बाग जो कि दूसरे बाघ के साथ बैल पर हमला बोल रहा था
यह देख कर भाग गया
भैंसे ने बााघ को मुंह के बल पकड़ा और जोर से उसे 
तीसरे खेत में जा फेंका
जब यहां घटना गांव के लोगों में देखी  तो वह दंग रह गए 
कि क्या कोई जानवर भी  अपने दोस्त की ऐसी मदद कर सकता है 
भैंसे ने मदद तो की लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी
भैंसा  बैल को नहीं बचा पाया बैल तो मर गया
पर अपनी दोस्ती की मिसाल उन गांव वालों के लिए छोड़ गया 
कि एक दोस्त दूसरे दोस्त की मदद करता है
इसीलिए तुलसीदास जी ने कहा है-
धीरज धर्म मित्र अरु नारी
आपत्ति काल परखिए चारी
शो दोस्तों आपको मेरी यह कहानी कैसी लगी जोकि हकीकत से ली गई है कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं मैं आपका अपना दोस्त नागेन्द्र पाल सोनी नई कहानी के साथ आपके साथ जल्दी उपस्थित होऊंगा तब तक अपना और अपने परिवार का  ख्याल रखें  और  मुझे फॉलो करना ना भूले

तेनालीराम की कहानियां : चोरी पकड़ी....

तेनालीराम की कहानियां : चोरी पकड़ी....

एक बार राजा कृष्णदेव राय के राज्य विजयनगर में लगातार चोरी होनी शुरू हुई। सेठों ने आकर राजा के दरबार में दुहाई दी, 'महाराज हम लूट गए बरबाद हो गए। रात को ताला तोड़कर चोर हमारी तिजोरी का सारा धन उड़ा ले गए।' 
राजा कृष्णदेव राय ने इन घटनाओं की जांच कोतवाल से करवाई, पर कुछ भी हाथ नहीं लगा। वे बहुत चिंतित हुए। चोरी की घटनाएं होती रहीं। चोरों की हिम्मत बढ़ती जा रही थी।
अंत में राजा ने दरबारियों को लताड़ते हुए कहा, 'क्या आप में से कोई भी ऐसा नहीं, जो चोरों को पकड़वाने की जिम्मेदारी ले सके?'
सारे दरबारी एक- दूसरे का मुंह देखने लगे। तेनालीराम ने उठकर कहा, 'महाराज यह जिम्मेदारी मैं लूंगा।' 


वहां से उठकर तेनालीराम नगर के एक प्रमुख जौहरी के यहां गया। उसने अपनी योजना उसे बताई और घर लौट गया। उस जौहरी ने अगले दिन अपने यहां आभूषणों की एक बड़ी प्रदर्शनी लगवाई। रात होने पर उसने सारे आभूषणों को एक तिजोरी में रखकर ताला लगा दिया।

आधी रात को चोर आ धमके। ताला तोड़कर तिजोरी में रखे सारे आभूषण थैले में डालकर वे बाहर आए। जैसे ही वे सेठ की हवेली से बाहर जाने लगे सेठ को पता चल गया, उसने शोर मचा दिया।

आस-पास के लोग भी आ जुटे। तेनालीराम भी अपने सिपाहियों के साथ वहां आ धमके और बोले, 'जिनके हाथों में रंग लगा हुआ है, उन्हें पकड़ लो।' जल्द ही सारे चोर पकड़े गए। अगले दिन चोरों को दरबार में पेश किया गया। सभी के हाथों पर लगे रंग देखकर राजा ने पूछा, 'तेनालीरामजी यह क्या है?'

' महाराज हमने तिजोरी पर गीला रंग लगा दिया था ताकि चोरी के इरादे से आए चोरों के शरीर पर रंग चढ़ जाए और हम उन्हें आसानी से पकड़ सकें।'

राजा ने पूछा, 'पर आप वहां सिपाहियों को तैनात कर सकते थे।'

' महाराज इसमें उनके चोरों से मिल जाने की संभावना थी।'

यह सुनकर राजा कृष्णदेव राय ने तेनालीराम की खूब प्रशंसा की ।
लेखक नागेन्द्र पाल सोनी

बुधवार, 2 जनवरी 2019

पंचतंत्र की मजेदार कहानी : शिकार का ऐलान...

पंचतंत्र की मजेदार कहानी : शिकार का ऐलान...

लेखक-नागेंद्र पाल सोनी
एक घने जंगल में एक शेर और उसके चार सेवक (लोमड़ी, चीता, चील और भेड़िया) रहते थे। लोमड़ी शेर की सेक्रेटरी थी। चीता राजा का अंगरक्षक था। सदा उसके पीछे चलता। चील दूर-दूर तक उड़कर समाचार लाती। भेड़िया गॄहमंत्री था। उनका असली काम तो शेर की चापलूसी करना था। इस काम में चारों माहिर थे इसलिए जंगल के दूसरे जानवर उन्हें 'चापलूस मंडली' कहकर पुकारते थे। 
शेर शिकार करता। जितना खा सकता, वह खाकर बाकी अपने सेवकों के लिए छोड़ जाया करता था। मजे में चारों का पेट भर जाता। 
एक दिन चील ने आकर चापलूस मंडली को सूचना दी, 'दोस्तों, सड़क के किनारे एक ऊंट बैठा है।'
भेड़िया चौंका, 'ऊंट! किसी काफिले से बिछड़ गया होगा।'
चीते ने जीभ चटकाई, 'हम शेर को उसका शिकार करने को राजी कर लें तो कई दिन दावत उड़ा सकते हैं।'
लोमड़ी ने घोषणा की, 'यह मेरा काम रहा।'
लोमड़ी शेर के पास गई और अपनी जुबान में मिठास घोलकर बोली, 'महाराज, दूत ने खबर दी हैं कि एक ऊंट सड़क किनारे बैठा है। मैंने सुना है कि मनुष्य के पाले जानवर का मांस का स्वाद ही कुछ और होता है। बिलकुल राजा-महाराजाओं के काबिल। आप आज्ञा दें तो आपके शिकार का ऐलान कर दूं?'
शेर लोमड़ी की मीठी बातों में आ गया और चापलूस मंडली के साथ चील द्वारा बताई जगह जा पहुंचा। वहां एक कमजोर-सा ऊंट सड़क किनारे निढाल बैठा था। उसकी आंखें पीली पड़ चुकी थीं। उसकी हालत देखकर शेर ने पूछा, 'क्यों भाई तुम्हारी यह हालत कैसे हुई?'
ऊंट कराहता हुआ बोला, 'जंगल के राजा! आपको नहीं पता कि इंसान कितना निर्दयी होता है। मैं एक ऊंटों के काफिले में एक व्यापार माल ढो रहा था। रास्ते में मैं बीमार पड़ गया। माल ढोने लायक नहीं रहा। उसने मुझे यहां मरने के लिए छोड़ दिया। आप ही मेरा शिकार कर मुझे मुक्ति दीजिए।'
ऊंट की कहानी सुनकर शेर को दुख हुआ। उसके दिल में राजाओं जैसी उदारता दिखाने की बात आई। 
शेर ने कहा, 'ऊंट, तुम्हें कोई जंगली जानवर नहीं मारेगा, मैं तुम्हें अभय देता हूं, तुम हमारे साथ चलोगे और उसके बाद हमारे साथ ही रहोगे।'
चापलूस मंडली के चेहरे लटक गए। भेड़िया फुसफुसाया, 'ठीक है। हम बाद में इसे मरवाने की कोई तरकीब निकाल लेंगे, फिलहाल शेर का आदेश मानने में ही भलाई है।'
इस प्रकार ऊंट उनके साथ जंगल में आया। कुछ ही दिनों में हरी घास खाने व आराम करने से वह स्वस्थ हो गया। शेर के प्रति वह ऊंट बहुत कृतज्ञ हुआ। शेर को भी ऊंट का नि:स्वार्थ प्रेम और भोलापन भाने लगा। ऊंट के तगड़ा होने पर शेर की शाही सवारी ऊंट के ही आग्रह पर उसकी पीठ पर निकलने लगी और वह चारों को पीठ पर बिठाकर चलता।
एक दिन चापलूस मंडली के आग्रह पर शेर ने हाथी पर हमला कर दिया। दुर्भाग्य से हाथी पागल निकला। शेर को उसने सूंड से उठाकर पटक दिया। शेर उठकर बच निकलने में सफल तो हो गया, पर उसे चोंटें बहुत लगीं।
शेर लाचार होकर बैठ गया। शिकार कौन करता? कई दिन न शेर ने कुछ खाया और न सेवकों ने। कितने दिन भूखे रहा जा सकता हैं? 
लोमड़ी बोली, 'हद हो गई। हमारे पास एक मोटा ताजा ऊंट है और हम भूखे मर रहे हैं।'
चीते ने ठंडी सांस भरी, 'क्या करें? शेर ने उसे अभयदान जो दे रखा है। देखो तो ऊंट की पीठ का कूबड़ कितना बड़ा हो गया है। चर्बी ही चर्बी भरी है इसमें।'
भेड़िए के मुंह से लार टपकने लगी, 'ऊंट को मरवाने का यही मौका है। दिमाग लड़ाकर कोई तरकीब सोचो।'
लोमड़ी ने धूर्त स्वर में सूचना दी, 'तरकीब तो मैंने सोच रखी है। हमें एक नाटक करना पड़ेगा।'
सब लोमड़ी की तरकीब सुनने लगे। योजना के अनुसार चापलूस मंडली शेर के पास गई। सबसे पहले चील बोली, 'महाराज, आपको भूखे पेट रहकर मरना मुझसे नहीं देखा जाता। आप मुझे खाकर भूख मिटाइए।'
लोमड़ी ने उसे धक्का दिया, 'चल हट! तेरा मांस तो महाराज के दांतों में फंसकर रह जाएगा। महाराज, आप मुझे खाइए।'
भेड़िया बीच में कूदा, 'तेरे शरीर में बालों के सिवा है ही क्या? महाराज मुझे अपना भोजन बनाएंगे।'
अब चीता बोला, 'नहीं! भेड़िए का मांस खाने लायक नहीं होता। मालिक, आप मुझे खाकर अपनी भूख शांत कीजिए।'
चापलूस मंडली का नाटक अच्छा था। अब ऊंट को तो कहना ही पड़ा, 'नहीं महाराज, आप मुझे मारकर खा जाइए। मेरा तो जीवन ही आपका दान दिया हुआ है। मेरे रहते आप भूखो मरें, यह नहीं होगा।'
चापलूस मंडली तो यही चाहती थी। सभी एक स्वर में बोले, 'यही ठीक रहेगा, महाराज! अब तो ऊंट खुद ही कह रहा है।'
चीता बोला, 'महाराज! आपको संकोच न हो तो हम इसे मार दें?'
चीता व भेड़िया एकसाथ ऊंट पर टूट पड़े और ऊंट मारा गया।
‍शिक्षा : चापलूसों की दोस्ती हमेशा खतरनाक होती है, इनसे सदा बचकर रहना चाहिए।
दोस्तों कहानी अच्छी लगे तो हमें फॉलो करें ताकि हम आपके लिए हमेशा कुछ न कुछ नहीं कहानी आपके आगे पेश करें और आपका मनोरंजन और दिमाग हमेशा प्रेम करते रहे मेरी कहानी अगर कहीं पर बुरी लगती हो या कोई कमी रह जाती हो तो मुझे जरूर बताएं मैं नागेंद्र पाल सोनी अपनी लेखनी में सुधार करुंगा करूंगा और प्रयास करूंगा आप लोगों के साथ बना रहा हूं आपका तहे दिल से धन्यवाद



मंगलवार, 1 जनवरी 2019

भंवरा और तितली की प्रेम कहानी

भंवरा और तितली की प्रेम कहानी |

लेखक-नागेंद्र पाल सोनी
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एक बाग में एक फूल पर एक भंवरा और तितली बैठा करते थे| वह एक दूसरे से बहुत मोहब्बत करते थे| वक्त के साथ उनकी मोहब्बत इतनी गहरी हो गई थी कि यदि उनमें से कोई एक दूसरे को नहीं देखता तो वह बेचैन होने लगते थे| एक दिन तितली ने भवरे से कहा कि मैं तुमसे जितना प्यार करती हूं क्या तुम भी मुझसे उतना ही प्यार करते हो?

किस बात पर भंवरे ने कहा यदि तुम्हें यकीन नहीं है तो आजमा कर देख लो|

तितली ने कहा:- जो कल सुबह इस फूल पर सबसे पहले आ कर बैठेगा तो समझ लेना वही सबसे ज्यादा प्यार करता है|



इस शर्त के साथ दोनों शाम को घर चले गए सुबह के वक्त कड़ाके की ठंड होने के बावजूद भी तितली सुबह-सुबह आकर फूल पर बैठ गई लेकिन भंवरा अभी तक नहीं आया था| तितली बहुत खुश थी क्योंकि वह शर्त जीत चुकी थी| कुछ देर बाद धूप से फूल खिला तो तितली ने देखा कि भंवरा फूल के अंदर मरा पड़ा है, क्योंकि वह शाम को घर गया ही नहीं था और ठंड से वही मर गया|

इसलिए सही कहा है किसी ने:-

दिल में रहने वालों का दिल दुखाया नहीं करते चाहने वालों को भूल से भी रुलाया नहीं करते

और सच्ची मोहब्बत किसी की आजमाया नहीं करते|



एक चिड़िया और चिड़ा की प्रेम कहानी

एक चिड़िया और चिड़ा की प्रेम
कहानी

लेखक नागेंद्र पाल सोनी
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एक दिन चिड़िया बोली - मुझे छोड़ कर कभी उड़ तो नहीं जाओगे ?
चिड़ा ने कहा - उड़
जाऊं तो तुम पकड़ लेना.
चिड़िया-मैं तुम्हें पकड़
तो सकती हूँ,
पर फिर पा तो नहीं सकती!
यह सुन चिड़े की आँखों में आंसू आ गए और उसने अपने पंख तोड़ दिए और बोला अब हम
हमेशा साथ रहेंगे,
लेकिन एक दिन जोर से तूफान आया,
चिड़िया उड़ने लगी तभी चिड़ा बोला तुम उड़
जाओ मैं नहीं उड़ सकता !!
चिड़िया- अच्छा अपना ख्याल रखना, कहकर
उड़ गई !
जब तूफान थमा और चिड़िया वापस
आई तो उसने देखा की चिड़ा मर चुका था
और एक डाली पर लिखा था.....
""काश वो एक बार तो कहती कि मैं तुम्हें
नहीं छोड़ सकती""
तो शायद मैं तूफ़ान आने से
पहले नहीं मरता ।।
""
किसी का ये सोचकर साथ मत छोड़ना,,
की उसके पास कुछ नहीं ,,
तुम्हे देने के लिए,,,
,,
बस ये सोचकर साथ निभाना,,,
की उसके पास कुछ नहीं,,,,
तुम्हारे सिवा खोने के लिए,,,
दोस्तों अगर आपको यह स्टोरी पसंद आये तोह अपने दोस्तों में शेयर करना मत भूलना ""



Nagendra pal soni

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