देव भूमि उत्तराखण्ड एक सुंदर कविता
मन करता है उत्तराखंड में, एक नया उत्तराखंड बसाते है,
बंजर भूमि और वीरान घरों को, फिर से सदाबहार बनाते है,
सोयी हुए सरकार को अब तो, मिल के हम जगायेंगे,
यही संकल्प है ये मेरा, एक नया उत्तराखंड बनायेंगे,
मन करता है उत्तराखंड में, एक नया उत्तराखंड बसाते है,
बंजर भूमि और वीरान घरों को, फिर से सदाबहार बनाते है,
जो छोड़ चलें गाऊँ को अब तो, उनको अहसास दिलायेंगे,
क्योँ हारा-फिरता रहता है इधर-उधर, उनको अपनों से मिलायेंगे,
मन करता है उत्तराखंड में, एक नया उत्तराखंड बसाते है,
बंजर भूमि और वीरान घरों को, फिर से सदाबहार बनाते है,
बूढ़े लोगों के आँखों के, आँशु अब हम पोछंगे,
उनके आँगन में अब बच्चे, हस-हस के अब खेलेंगे,
मन करता है उत्तराखंड में, एक नया उत्तराखंड बसाते है,
बंजर भूमि और वीरान घरों को, फिर से सदाबहार बनाते है,
कितनों ने बलिदान दिया, कितनों ने पहचान दिया,
ये न जाने कौन थे वो, जिन्होंने अंदर ही अंदर अपमान पिया,
मन करता है उत्तराखंड में, एक नया उत्तराखंड बसाते है,
बंजर भूमि और वीरान घरों को, फिर से सदाबहार बनाते है,
इन बीस सालों में क्या- क्या हुआ, ये तुम जानते होंगे,
हर एक दिन हजारों अपने, अपनों से दूर जाते होंगे,
मन करता है उत्तराखंड में, एक नया उत्तराखंड बसाते है,
बंजर भूमि और वीरान घरों को, फिर से सदाबहार बनाते है,











