मंगलवार, 16 फ़रवरी 2021

एक किसान की कहानी जिसे अपने जानवरों से बहुत प्यार था

 एक गांव में एक किसान रहता था 

     किसान के पास एक कबूतर एक मुर्गा और एक बकरा था 

किसान के घर में एक चूहा भी था जिससे किसान बहुत ज्यादा परेशान था 

किसान ने सोचा कि अगर इस चूहे को पिंजरे में बंद कर दिया जाए

तो मुझे इससे छुटकारा मिल सकता है और किसान ने चूहे के लिए एक पिंजरा लिया

जब चूहे ने यह देखा कि मेरे वास्ते किसान ने पिंजरा लगा रखा है तो उसने कबूतर से जाकर कहा

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कबूतर भैया मुझे किसान से बचाओ और किसान ने यह पिंजरा मेरे लिए रखा है तो इसमें मेरी रक्षा करो 

लेकिन कबूतर ने कहा कि यह केकरा तुम्हारा वास्ते है। यह तेरी प्रॉब्लम है

 फिर चूहा मुर्गे के पास गया और मुर्गे से कहा गया कि मुर्गा भैया मेरी रक्षा करो किसान ने मेरे वास्ते यह पिंजरा लगा रखा है और मैं इसमें फंस सकता हूं तो आप मेरी कुछ मदद करें। 

लेकिन मुर्गे ने भी यही कहा कि यहां तेरी प्रॉब्लम है 

फिर चूहा अंतिम बकरे के पास गया और बकरे से कहा कि बकरे भैया मेरी कुछ मदद करो किसान ने मेरे वास्ते पिंजरा रखा है और मैं इसमें फंस सकता हूं। 

आप मेरी थोड़ी मदद करोगे तो मैं इस पिंजरे में नहीं फंसूगा लेकिन बकरे ने भी कहा कि यह तेरी प्रॉब्लम है और इस प्रॉब्लम में मुझे मत घसीट नहीं खुद ही इसका समाधान कर।

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फिर चूहा वहाँ से चला जाता है और कुछ देर बाद उस पिंजरे में एक सांप पास जाता है फिर सुबह किसान की पत्नी कोरा देखने आता है तो उस समय सांप उसकी पत्नी को डांस लेता है किसान अपनी पत्नी को एक वैद्य के पास ले जाता है वैद्य सांप की आत्मा को बुलाकर जहर निकाल लेता है 

फिर उसके बाद किसान को कहना है कि अपनी पत्नी को कबूतर का सूप पिलाना तो इसकी सेहत ठीक हो जाएगी किसान घर पर जाता है और कबूतर का सूप बनाकर अपनी पत्नी को देता है 

फिर उसके बाद रिश्तेदार उसकी पत्नी को मिलने आते हैं तो उनके लिए किसान अपने मुर्गे को मार देता है उसके बाद जब उसकी पत्नी सही रूप से ठीक हो जाती है तो किसान खुशी में गांव वालों को मटन बिरयानी खिलाने का फैसला लेता है और फिर वह बकरे को मार देता है।

तो दोस्तों आज की कहानी का यही रहस्य था 

दूसरे को परेशानी में देखकर उसकी मदद करनी चाहिए न की यह कहकर उसका साथ ना देना किया परेशानी तो तेरी है क्योंकि क्या पता दूसरे की परेशानी कभी खुद के ही गले लग जाए जैसे इस कहानी में हुआ अगर तीनों में से एक भी चूहे की मदद करता है। तो तीनों का यह अंजाम नहीं होता

रविवार, 14 फ़रवरी 2021

एक सन्यासी और राजा की कहानी

एक संन्यासी एक राजा के पास पहुचे। राजा ने उनका आदर सत्कार किया। कुछ दिन उनके राज्य में रुकने के पश्चात संन्यासी ने जाते समय राजा से अपने लिए उपहार मांगा।

राजा ने एक पल सोचा और कहा - "जो कुछ भी खजाने में है, आप ले सकते हैं।"

संन्यासी ने उत्तर दिया - "लेकिन खजाना तुम्हारी संपत्ति नहीं है, वह तो राज्य का है और तुम सिर्फ ट्रस्टी हो।"

"तो यह महल ले लो।"



"यह भी प्रजा का है।" - संन्यासी ने हंसते हुए कहा।

"तो मेरा यह शरीर ले लो। आपकी जो भी मर्जी हो, आप पूरी कर सकते हैं।" - राजा बोला।

"लेकिन यह तो तुम्हारी संतान का है। मैं इसे कैसे ले सकता हूं?" -संन्यासी ने उत्तर दिया।

"तो महाराज आप ही बतायें कि ऐसा क्या है जो मेरा हो और आपके लायक हो?" - राजा ने पूछा।

संन्यासी ने उत्तर दिया - "हे राजा, यदि आप सच में मुझे कुछ उपहार देना चाहते हैं, तो अपना अहंकार, अपना अहम दे दो।"

"अहंकार पराजय का द्वार है। अहंकार यश का नाश करता है।यह खोखलेपन का परिचायक है।""

शनिवार, 13 फ़रवरी 2021

एक लड़का एक लड़की की दिल छू लेने वाली प्रेम कहानी

                       दिल छू लेने वाली प्रेम कहानी

लड़की अपने बॉयफ्रेंड से पूछती है - अच्छा किसी दूसरे लड़के से मेरी शादी हो जाए तो तुम क्या करोगे लड़का - तुम्हें भूल जाऊंगा ( लड़के ने बहुत छोटा सा जवाब दिया ) ये सुनकर लड़की गुस्से में दूसरी तरफ घूम कर बैठ गई फिर लड़के ने कहा - सबसे बड़ी बात कि तुम मुझे भूल जाओगी जितना जल्दी मैं तुम्हें भुला सकूँगा उससे ज्यादा जल्दी तुम मुझे भुला दोगी !

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कैसे ? लड़की ने पूछा लड़के ने बोलना शुरू किया - " सोचो शादी का पहला दिन है तुम एक तरह के घर में हो शरीर पर जेवर चेहरे पर मेक अप चारों तरफ कैमरे का फ्लैश और लोगों की भीड़ जहां तुम मुझे चाह कर भी याद नहीं कर सकती ! " और मैं तुम्हारी शादी की खबर सुनकर दोस्तों के साथ कुछ उटपटांग पी कर किसी कोने में पड़ा रहूंगा और फिर जब मुझे होश आएगा तब मैं तुम्हें धोखेबाज बेवफा बोलकर गाली दूंगा ! 

" " फिर जब तुम्हारी याद आएगी तो दोस्त के कंधे पे सरकार रख के रो लूंगा ! शादी के बाद तुम्हारा बिजी टाइम शुरू फिर तुम अपने पति और हजार तरह के रस्मों को निभाने में बिजी रहोगी . फिर कभी कभी तुम्हें मेरी याद आएगी जब तुम अपने पति का हाथ पकड़ोगी उसके साथ बाइक पर बैठोगी ! " और मैं आवारा की तरह इधर उधर घूमता रहूंगा जैसे जिंदगी का कोई मकसद ही नहीं और अपने दोस्तों को समझाऊंगा कि " 

कभी प्यार मत करना कुछ नहीं मिलता जिंदगी खतम हो जाती है प्यार के चक्कर में

 कुछ वक्त बाद तुम पति के साथ हनीमून पर जाओगी नया घर होगा शॉपिंग होगी नयी जिम्मेदारियां अब तुम बहुत खुश हो अचानक तुम्हें मेरी याद आएगी और तुम सोचोगी . " पता नहीं किस हाल में होगा और मेरी खुशी की दुआ मांगते हुए वापस अपने परिवार में बिजी हो जाओगी !

मैं अब तक मम्मी पापा भाई या फिर दोस्तों से डांट सुन सुन कर लगभग सुधर गया हूं सोच लिया अब कोई काम करना है एक अच्छी सी लड़की से शादी करके तुम्हें भी दिखा देना है और सबको यही बोलूंगा कि भुला दिया है मैंने तुम्हें लेकिन तब भी मैं तुम्हारे मैसेजेस को आधी रात को

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निकाल कर पढूंगा और सोचूंगा 

शायद मेरे प्यार में ही कमी थी जो तुम्हें न पा सका 

फिर अपनी तकलीफ को कम करने की कोशिश करूंगा 2 साल बाद अब तुम कोई प्रेमिका या नई दुल्हन नहीं रही अब तुम # मां बन चुकी हो पुराने आशिक की याद और पति के प्यार को छोड़कर तुम अपने बच्चे के लिए सोचोगी अब तुम अपने बच्चे के साथ बिजी रहोगी मतलब अब तक मैं तुम्हारी जिंदगी से परमानेन्टली डिलीट हो चुका हूं इधर मुझे भी अच्छा काम मिल गया है शादी की बात चल रही है और लड़की भी पसंद हो गई है अब मेरा बिजी टाइम शुरू हो गया अब मैं तुम्हें सचमुच भूल गया हूं अगर किसी जोड़ी को देखता हूं तो तुम्हारी याद आती है लेकिन अब तकलीफ नहीं होती ... 

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यहां तक सुनने के बाद लड़के ने देखा लड़की की आंख में आंसू छलक रहे हैं लड़की भरी आंखों से लड़के की तरफ देखती है दोनों बिल्कुल चुप हैं पर आंखे बरस रही हैं थोड़ी देर बाद लड़की - " तो क्या सब कुछ यहीं खतम हो जाएगा ? लड़का - " नहीं . ! किसी बात जब तुम रूठ जाओगी अपने पति से किसी बात पर लेकिन तुम्हारे पति आराम से सो रहे होंगे पर उस रात तुम्हारी आंखों में नींद नहीं होगी और इधर मैं भी अपनी पत्नी से किसी बात पर खफा होकर तुम्हारी तरह जागूंगा . पूरी दुनिया सो रही होगी सिर्फ हम दोनों के अलावा फिर हम अपने अतीत को याद करके खूब रोएंगे . एक दूसरे को बहुत महसूस करेंगे लेकिन 

इस बात का भगवान के अलावा और किसी को पता नहीं चलेगा

 बस इतना कहकर वो दोनों रोते हुए एक दूसरे को गले लगा लेते हैं

                       लेखक - नागेन्द्र पाल सोनी

शुक्रवार, 12 फ़रवरी 2021

जो दूसरों का भला करते हैं उनका भला खुद ही हो जाता

                 लेखक - नागेन्द्र पाल सोनी

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बहुत समय पहले की बात है एक विख्यात ऋषि गुरुकुल में बालकों को शिक्षा प्रदान किया करते थे . उनके गुरुकुल में बड़े-बड़े रजा महाराजाओं के पुत्रों से लेकर साधारण परिवार के लड़के भी पढ़ा करते थे।

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वर्षों से शिक्षा प्राप्त कर रहे शिष्यों की शिक्षा आज पूर्ण हो रही थी और सभी बड़े उत्साह के साथ अपने अपने घरों को लौटने की तैयारी कर रहे थे कि तभी ऋषिवर की तेज आवाज सभी के कानो में पड़ी ,

” आप सभी मैदान में एकत्रित हो जाएं। “

आदेश सुनते ही शिष्यों ने ऐसा ही किया।

ऋषिवर बोले , “ प्रिय शिष्यों , आज इस गुरुकुल में आपका अंतिम दिन है . मैं चाहता हूँ कि यहाँ से प्रस्थान करने से पहले आप सभी एक दौड़ में हिस्सा लें .

यह एक बाधा दौड़ होगी और इसमें आपको कहीं कूदना तो कहीं पानी में दौड़ना होगा और इसके आखिरी हिस्से में आपको एक अँधेरी सुरंग से भी गुजरना पड़ेगा .”

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तो क्या आप सब तैयार हैं ?”

” हाँ , हम तैयार हैं ”, शिष्य एक स्वर में बोले .

दौड़ शुरू हुई .

सभी तेजी से भागने लगे . वे तमाम बाधाओं को पार करते हुए अंत में सुरंग के पास पहुंचे . वहाँ बहुत अँधेरा था और उसमे जगह – जगह नुकीले पत्थर भी पड़े थे जिनके चुभने पर असहनीय पीड़ा का अनुभव होता था .

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सभी असमंजस में पड़ गए , जहाँ अभी तक दौड़ में सभी एक सामान बर्ताव कर रहे थे वहीँ अब सभी अलग -अलग व्यवहार करने लगे ; खैर , सभी ने ऐसे-तैसे दौड़ ख़त्म की और ऋषिवर के समक्ष एकत्रित हुए।

“पुत्रों ! मैं देख रहा हूँ कि कुछ लोगों ने दौड़ बहुत जल्दी पूरी कर ली और कुछ ने बहुत अधिक समय लिया , भला ऐसा क्यों ?”, ऋषिवर ने प्रश्न किया।

यह सुनकर एक शिष्य बोला , “ गुरु जी , हम सभी लगभग साथ –साथ ही दौड़ रहे थे पर सुरंग में पहुचते ही स्थिति बदल गयी …कोई दुसरे को धक्का देकर आगे निकलने में लगा हुआ था तो कोई संभल -संभल कर आगे बढ़ रहा था …और कुछ तो ऐसे भी थे जो पैरों में चुभ रहे पत्थरों को उठा -उठा कर अपनी जेब में रख ले रहे थे ताकि बाद में आने वाले लोगों को पीड़ा ना सहनी पड़े…. इसलिए सब ने अलग-अलग समय में दौड़ पूरी की .”

“ठीक है ! जिन लोगों ने पत्थर उठाये हैं वे आगे आएं और मुझे वो पत्थर दिखाएँ “, ऋषिवर ने आदेश दिया .

आदेश सुनते ही कुछ शिष्य सामने आये और पत्थर निकालने लगे . पर ये क्या जिन्हे वे पत्थर समझ रहे थे दरअसल वे बहुमूल्य हीरे थे . सभी आश्चर्य में पड़ गए और ऋषिवर की तरफ देखने लगे .

“ मैं जानता हूँ आप लोग इन हीरों के देखकर आश्चर्य में पड़ गए हैं .” ऋषिवर बोले।

“ दरअसल इन्हे मैंने ही उस सुरंग में डाला था , और यह दूसरों के विषय में सोचने वालों शिष्यों को मेरा इनाम है।

पुत्रों यह दौड़ जीवन की भागम -भाग को दर्शाती है, जहाँ हर कोई कुछ न कुछ पाने के लिए भाग रहा है . पर अंत में वही सबसे समृद्ध होता है जो इस भागम -भाग में भी दूसरों के बारे में सोचने और उनका भला करने से नहीं चूकता है .

अतः यहाँ से जाते -जाते इस बात को गाँठ बाँध लीजिये कि आप अपने जीवन में सफलता की जो इमारत खड़ी करें उसमे परोपकार की ईंटे लगाना कभी ना भूलें , अंततः वही आपकी सबसे अनमोल जमा-पूँजी होगी । “"

गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

प्रेरणादायक कहानी

प्रेरणादायक कहानी

किसी जंगल मे एक गर्भवती हिरणी थी

जिसका प्रसव होने को ही था .

उसने एक तेज धार वाली नदी के किनारे घनी झाड़ियों और घास के पास एक जगह देखी

जो उसे प्रसव हेतु सुरक्षित स्थान लगा .

अचानक उसे प्रसव पीड़ा शुरू होने लगी , 

लगभग उसी समय आसमान मे काले काले बादल छा गए

और घनघोर बिजली कड़कने लगी 

   








जिससे जंगल मे आग भड़क उठी .

वो घबरा गयी उसने अपनी दायीं और देखा लेकिन ये क्या वहां एक बहेलिया उसकी और तीर का निशाना लगाये हुए था , 

उसकी बाईं और भी एक शेर उस पर घात लगाये हुए उसकी और बढ़ रहा था अब वो हिरणी क्या करे ? ,

वो तो प्रसव पीड़ा से गुजर रही है , अब क्या होगा ?, 






क्या वो सुरक्षित रह सकेगी ?, क्या वो अपने बच्चे को जन्म दे सकेगी ? , क्या वो नवजात सुरक्षित रहेगा ?,

या सब कुछ जंगल की आग मे जल जायेगा ?, अगर इनसे बच भी गयी तो क्या वो बहेलिये के तीर से बच पायेगी ? 

या क्या वो उस खूखार शेर के पंजों की मार से दर्दनाक मौत मारी जाएगी ? जो उसकी और बढ़ रहा है , उसके एक और जंगल की आग , दूसरी और तेज धार वाली बहती नदी , और सामने उत्पन्न सभी संकट , अब वो क्या करे ? लेकिन फिर उसने अपना ध्यान अपने नव आगंतुक को जन्म देने की





और केन्द्रित कर दिया . फिर जो हुआ वो आश्चर्य जनक था . कडकडाती बिजली की चमक से शिकारी की आँखों के सामने अँधेरा छा गया , और उसके हाथो से तीर चल गया और सीधे भूखे शेर को जा लगा .






 बादलो से तेज वर्षा होने लगी और जंगल की आग धीरे धीरे  बुझ गयी . इसी बीच हिरणी ने एक स्वस्थ शावक को जन्म दिया . ऐसा हमारी जिन्दगी मे भी होता है , जब हम चारो और से समस्याओं से घिर जाते है , नकारात्मक विचार हमारे दिमाग को जकड लेते है , कोई संभावना दिखाई नहीं देती , हमें कोई एक उपाय करना होता है . , 





उस समय कुछ विचार बहुत ही नकारात्मक होते है , जो हमें चिंता ग्रस्त कर कुछ सोचने समझने लायक नहीं छोड़ते . ऐसे मे हमें उस हिरणी से ये शिक्षा मिलती है की 






हमें अपनी प्राथमिकता की और देखना चाहिए , जिस प्रकार हिरणी ने सभी नकारात्मक परिस्तिथियाँ उत्पन्न होने पर भी अपनी प्राथमिकता " प्रसव " पर ध्यान केन्द्रित किया , जो उसकी पहली प्राथमिकता थी . बाकी तो मौत या जिन्दगी कुछ भी उसके हाथ मे था ही नहीं , और उसकी कोई भी क्रिया या प्रतिक्रिया उसकी और गर्भस्थ बच्चे की जान ले सकती थी उसी प्रकार हमें भी अपनी प्राथमिकता की और ही ध्यान देना चाहिए ।  

जय श्री राम







शनिवार, 6 फ़रवरी 2021

लोकतंत्र की परिभाषा तभी समझ आ गई थी

लोकतंत्र की परिभाषा तभी समझ आ गई थी


 पण्डित जी के बड़े बेटे का कहना है कि उनका लोकतंत्र पर से यकीन सन 88 में ही उठ गया था। 

 उनकी जुबानी - "जब  स्कूल की छुट्टियां हुई और रात को खाने की मेज़ पर पापा ने पूछा - "बताओ बच्चों छुट्टियों में दादा जी के घर जाना है या नाना जी के ?"

सब बच्चों ने खुशी से हम आवाज़ होकर नारा लगाया - "दादा जी  के ..."

लेकिन अकेली मम्मी ने कहा कि 'नाना जी  के...।'


बहुमत चूंकि दादा जी के हक़ में था, लिहाज़ा मम्मी का मत हार गया और पापा ने बच्चों के हक़ में फैसला सुना दिया, और हम दादा जी के घर जाने की खुशी दिल में दबा कर सो गए। 


अगली सुबह मम्मी ने तौलिए से गीले बाल सुखाते हुए मुस्कुरा कर कहा - "सब बच्चे जल्दी जल्दी कपड़े बदल लो हम नाना जी  के घर जा रहे हैं...।"

मेंने हैरत से मुँह फाड़ के पापा की तरफ देखा, तो वो नज़रें चुरा कर अख़बार पढ़ने की  अदाकारी करने लगे। 


बस मैं उसी वक़्त समझ गया था कि लोकतंत्र में फैसले जनता की खुशियों के लिए नहीं, बल्कि बन्द कमरों में उस वक़्त होते हैं, जब जनता सो रही होती है!"

सोमवार, 14 सितंबर 2020

चोर और कुआँ


चोर और कुआँ

लेखक - नागेन्द्र पाल सोनी

एक बार जब राजा कृष्णदेवराय जेल का सर्वेक्षण करने के लिए गए, तो वहाँ पर बंदी बनाए गए दो चोरों ने राजा से दया करने की सिफारिश की। उन्होंने बताया कि वे दोनों चोरी करने में मदद कर रहे थे, इसलिए वे दोनों अन्य चोरों को पकड़ने में राजा की मदद कर सकते हैं।



राजा एक दयालु शासक था इसलिए उन्होंने अपने सिपाहियों से कह कर उन दोनों ठों को रिहा करने का हुक्म दे दिया लेकिन एक शर्त के साथ। राजा ने चोरों से कहा कि हम तुम्हें रिहा कर देंगे और तुम्हें अपने जासूस के रूप में नियुक्त करेंगे, अगर तुम लोग मेरे वकील तेनालीराम के घर में घुसकर वहाँ से कीमती सामान चुराने में कामयाब रहे तो। थोंस ने राजा की चुनौती को स्वीकार कर लिया।

उसी रात दोनों चोर तेनालीराम के घर गए और झाड़ियों के पीछे छिप गए। रात के खाने के बाद, जब तेनालीराम टहलने के लिए बाहर गए, तो उन्होंने झाड़ियों के बीच में कुछ सरदारों की बात सुनी। उन्हें अपने बगीचे में चोरों की मौजूदगी का एहसास हुआ।

थोड़ी देर बाद वह अंदर गए और अपनी पत्नी को जोर से कहा कि उन्हें अपने कीमती सामान के बारे में सावधान रहना होगा, क्योंकि दो चोर भाग रहे थे। उन्होंने अपनी पत्नी को सभी सोने और चांदी के सिक्के और आभूषण को एक बक्से में रख देने को कहा। चोरों ने तेनाली और उसकी पत्नी के बीच की बातचीत को सुना।

कुछ समय बाद, तेनालीराम ने बक्से को अपने घर के पीछे मौजूद कुएं में ले जाकर फेंक दिया। चोरों ने यह सब देखा। जैसे ही तेनाली अपने घर के अंदर गए, दोनों चोरों ने कुएं के पास जाकर उसमें से पानी निकालना शुरू कर दिया। वे पूरी रात पानी खींचते रहे। लगभग भोर में, वो उस बक्से को बाहर निकालने में कामयाब रहे, लेकिन उसमें मौजूद पत्थर देखकर चौंक गए। तभी तेनालीराम बाहर आए और उन चोरों से कहा कि हमें रात में अच्छी तरह से सोने के लिए और मेरे पौधों को पानी देने के लिए आपका बहुत धन्यवाद । दोनों चोरों समझ गए कि तेनालीराम ने उन्हें बेवकूफ बनाया है। उन्होंने तेनालीराम से माफी मांगी और उन्होंने उन चोरों को जाने दिया।

नैतिक शिक्षा


कहानी से नैतिक शिक्षा ये मिलती है कि आपको हमेशा गलत चीजों को स्वीकार करने से बचना चाहिए।


अकबर बीरबल की कहानी: रेत से चीनी अलग करना | Ret Chini Alag

 अकबर बीरबल की कहानी: रेत से चीनी अलग करना | Ret Chini Alag



लेखक - नागेन्द्र पाल सोनी


एक बार बादशाह अकबर, बीरबल और सभी मंत्रीगण दरबार में बैठे हुए थे। सभा की कार्यवाही चल रही थी। एक-एक करके राज्य के लोग अपनी समस्याएं लेकर दरबार में आ रहे थे। इसी बीच वहां एक व्यक्ति दरबार में पहुंचा। उसके हाथ में एक मर्तबान था। सभी उस मर्तबान की ओर देख रहे थे, तभी अकबर ने उस व्यक्ति से पूछा – ‘क्या है इस मर्तबान में?’




उसने कहा, ‘महाराज इसमें चीनी और रेत का मिश्रण है।’ अकबर ने फिर पूछा ‘किसलिए?’ अब दरबारी ने कहा – ‘गलती माफ हो महाराज, लेकिन मैंने बीरबल की बुद्धिमत्ता के कई किस्से सुने हैं। मैं उनकी परीक्षा लेना चाहता हूं। मैं यह चाहता हूं कि बीरबल इस रेत में से बिना पानी का इस्तेमाल किए, चीनी का एक-एक दाना अलग कर दें।’ अब सभी हैरानी से बीरबल की ओर देखने लगे।



अब अकबर ने बीरबल की ओर देखा और कहा, ‘देख लो बीरबल, अब तुम कैसे इस व्यक्ति के सामने अपनी बुद्धिमानी का परिचय दोगे।’ बीरबल ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘महाराज हो जाएगा, यह तो मेरे बाएं हाथ का काम है।’ अब सभी लोग हैरान थे कि बीरबल ऐसा क्या करेंगे कि रेत से चीनी अलग-अलग हो जाएगी? तभी बीरबल उठे और उस मर्तबान को लेकर महल में मौजूद बगीचे की ओर बढ़ चले। उनके पीछे वह व्यक्ति भी था।




अब बीरबल बगीचे में एक आम के पेड़ के नीचे पहुंचे। अब वह मर्तबान में मौजूद रेत और चीनी के मिश्रण को एक आम के पेड़ के चारों तरफ फैलाने लगे। तभी उस व्यक्ति ने पूछा, ‘अरे यह क्या कर रहे हो?’ इस पर बीरबल ने कहा, ‘ये आपको कल पता चलेगा।’ इसके बाद दोनों महल में वापस आ गए। अब सभी को कल सुबह का इंतजार था। अगली सुबह जब दरबार लगा, तो अकबर और सारे मंत्री एक साथ बगीचे में पहुंचे। साथ में बीरबल और रेत व चीनी का मिश्रण लाने वाला व्यक्ति भी था। सभी आम के पेड़ के पास पहुंच गए।




सभी ने देखा कि अब वहां सिर्फ रेत पड़ी हुई है। दरअसल, रेत में मौजूद चीनी को चीटियों ने निकालकर अपने बिल में इकट्ठा कर लिया था और बची-खुची चीनी को कुछ चीटियां उठाकर अपने बिल में ले जा रही थीं। इस पर उस व्यक्ति ने पूछा, ‘चीनी कहां गई?’ तो बीरबल ने कहा, ‘रेत से चीनी अलग हो गई है।’ सभी जोर-जोर से हंसने लगे। बीरबल की यह चतुराई देख अकबर ने उस व्यक्ति से कहा, ‘अगर अब तुम्हें चीनी चाहिए, तो तुम्हें चीटियों के बिल में घुसना पड़ेगा।’ इस पर सभी ने फिर से ठहाका लगाया और बीरबल की तारीफ करने लगे।

कहानी से सीख


किसी को नीचा दिखाने का प्रयास आपके लिए हानिकारक हो सकता है।







सोमवार, 7 सितंबर 2020

मंजिल उन्हीं को मिलती है




मंजिल उन्हीं को मिलती है

जिनके सपने में जान होती है

 पंखों से कुछ नहीं होता है

हौसलों से उड़ान होती है




सोमवार, 31 अगस्त 2020

Mahabharat : जब कर्ण ने श्रीकृष्ण से पूछा मेरा क्या दोष था ? जरूर जानिए श्रीकृष्ण का उत्तर

 

Mahabharat : जब कर्ण ने श्रीकृष्ण से पूछा मेरा क्या दोष था ? जरूर जानिए श्रीकृष्ण का उत्तर

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कर्ण ने कृष्ण से पूछा - मेरा जन्म होते ही मेरी माँ ने मुझे त्याग दिया। क्या अवैध संतान होना मेरा दोष था ?
 
द्रोणाचार्य ने मुझे सिखाया नहीं क्योंकि मैं क्षत्रिय पुत्र नहीं था।
 
परशुराम जी ने मुझे सिखाया तो सही परंतु श्राप दे दिया कि जिस वक्त मुझे उस विद्या की सर्वाधिक आवश्यकता होगी, मुझे उसका विस्मरण होगा। क्योंकि उनके अनुसार मैं क्षत्रिय नहीं था।
 
केवल संयोगवश एक गाय को मेरा बाण लगा और उसके स्वामी ने मुझे श्राप दिया जबकि मेरा कोई दोष नहीं था।द्रौपदी स्वयंवर में मेरा अपमान किया गया।
 
माता कुंती ने मुझे आखिर में मेरा जन्म रहस्य बताया भी तो अपने अन्य बेटों को बचाने के लिए।
 
जो भी मुझे प्राप्त हुआ है,दुर्योधन से ही हुआ है।
 
*तो, अगर मैं उसकी तरफ से लड़ूँ तो मैं गलत कहाँ हूँ ?
 
*कृष्ण ने उत्तर दिया:
 
*कर्ण, मेरा जन्म कारागार में हुआ।
 
*जन्म से पहले ही मृत्यु मेरी प्रतीक्षा में घात लगाए थी।
 
*जिस रात मेरा जन्म हुआ, उसी रात मातापिता से दूर किया गया।
 *तुम्हारा बचपन खड्ग, रथ, घोड़े, धनुष्य और बाण के बीच उनकी ध्वनि सुनते बीता। मुझे ग्वाले की गौशाला मिली, गोबर मिला और खड़ा होकर चल भी पाया उसके पहले ही कई प्राणघातक हमले झेलने पड़े।
*कोई सेना नहीं, कोई शिक्षा नहीं। लोगों से ताने ही मिले कि उनकी समस्याओं का कारण मैं हूँ। तुम्हारे गुरु जब तुम्हारे शौर्य की तारीफ कर रहे थे, मुझे उस उम्र में कोई शिक्षा भी नहीं मिली थी। जब मैं सोलह वर्षों का हुआ तब कहीं जाकर ऋषि सांदीपन के गुरुकुल पहुंचा।
 
*तुम अपनी पसंद की कन्या से विवाह कर सके।
 
*जिस कन्या से मैंने प्रेम किया वो मुझे नहीं मिली और उनसे विवाह करने पड़े जिन्हें मेरी चाहत थी या जिनको मैंने राक्षसों से बचाया था।
 
*मेरे पूरे समाज को यमुना के किनारे से हटाकर एक दूर समुद्र के किनारे बसाना पड़ा, उन्हें जरासंध से बचाने के लिए। रण से पलायन के कारण मुझे भीरु भी कहा गया।
 
अगर दुर्योधन युद्ध जीतता है तो तुम्हें बहुत श्रेय मिलेगा।
 
*धर्मराज अगर जीतता है तो मुझे क्या मिलेगा?
 
*एक बात का स्मरण रहे कर्ण -
 
*हर किसी को जिंदगी चुनौतियाँ देती है, जिंदगी किसी के भी साथ न्याय नहीं करती। दुर्योधन ने अन्याय का सामना किया है तो युधिष्ठिर ने भी अन्याय भुगता है।
 
*लेकिन सत्य धर्म क्या है यह तुम जानते हो।
 
*कोई बात नहीं अगर कितना ही अपमान हो, जो हमारा अधिकार है वो हमें ना मिल पाए...महत्व इस बात का है कि तुम उस समय उस संकट का सामना कैसे करते हो।
 
*रोना धोना बंद करो कर्ण,जिंदगी न्याय नहीं करती इसका मतलब यह नहीं होता कि तुम्हें अधर्म के पथ पर चलने की अनुमति है।
   नागेन्द्र पाल सोनी

बदल जाओ वक्त के साथ

बदल जाओ वक्त के साथ

           या फिर वक्त बदलना सीखो

मजबूरियों को मत कोसो

          हर हाल मे जीना सीखो


Nagendra pal soni

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